इंदौर। नवरात्रि पर दो ऋतुओं का संधिकाल होता है, इस समय ग्रहों की विशेष स्थिति होती है, जो व्यक्ति को संकल्पवान बनाती है। ज्योतिष के अनुसार मूल
नक्षत्र में देवी का आवाहन और श्रवण नक्षत्र में विसर्जन होता है। इस दौरान संकल्पवान होकर उपवास के साथ सात्विक विधि से फलों का आहार लेने और सात्विक विधि से विशेष आराधना करते हुए जो इच्छा की जाती है वह फलीफूत हो जाती है। निष्काम रूप से की गई आराधना ही फलीफूत होती है।
यह बात पीथमपुर बायपास रोड स्थित शंकराचार्य मठ में प्रभारी ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने प्रवचन में कही।
स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है उपवास
महाराजश्री ने बताया आयुर्वेद के अनुसार वर्षाकाल में अनाज खाने के कारण से शरीर में कुछ विषाक्त तत्व उत्पन्न हो जाते हैं जो ऋतुओं के संधिकाल यानी वर्षाकाल का समापन और शीत ऋतु के आगमन में सक्रिय होकर व्यक्ति को बीमार कर देते हैं। इससे बचने के लिए उपवास और फलों का आहार करने से विषाक्त तत्व नष्ट हो जाते हैं और शरीर में पौष्टिक तत्वों की कमी दूर हो जाती है और व्यक्ति स्वस्थ रहता है।