134 साल पुराने अयोध्या मंदिर-मस्जिद विवाद पर शनिवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुआई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया। इसके तहत अयोध्या की 2.77 एकड़ की पूरी विवादित राम मंदिर निर्माण के लिए दे दी। शीर्ष अदालत ने कहा कि मंदिर निर्माण के लिए 3 महीने में ट्रस्ट बने और इसकी योजना तैयार की जाए। चीफ जस्टिस ने मस्जिद बनाने के लिए मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ वैकल्पिक जमीन दिए जाने का फैसला सुनाया, जो कि विवादित जमीन की करीब दोगुना है। चीफ जस्टिस ने कहा कि ढहाया गया ढांचा ही भगवान राम का जन्मस्थान है और हिंदुओं की यह आस्था निर्विवादित है।
6 अगस्त से 16 अक्टूबर तक इस मामले पर 40 दिनसुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।संविधान पीठ द्वारा शनिवार को45 मिनट तक पढ़े गए 1045 पन्नों के फैसले ने देश के इतिहास के सबसे अहम और एक सदी से ज्यादा पुराने विवाद का अंत कर दिया। चीफ जस्टिस गोगोई, जस्टिस एसए बोबोडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एस अब्दुल नजीर की पीठ ने स्पष्ट किया कि मस्जिद को अहम स्थान पर ही बनाया जाए। रामलला विराजमान को दी गई विवादित जमीन का स्वामित्व केंद्र सरकार के रिसीवर के पास रहेगा।
फैसले के मुख्य बिंदु
रामलला विराजमान/मंदिर
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा- राम जन्मभूमि स्थान न्यायिक व्यक्ति नहीं है, जबकि भगवान राम न्यायिक व्यक्ति हो सकते हैं। ढहाया गया ढांचा ही भगवान राम का जन्मस्थान है, हिंदुओं की यह आस्था निर्विवादित है। विवादित 2.77 एकड़ जमीन रामलला विराजमान को दी जाए। इसका स्वामित्व केंद्र सरकार के रिसीवर के पास रहेगा। 3 महीने के भीतर ट्रस्ट का गठन कर मंदिर िनर्माण की योजना बनाई जाए।
सुन्नी वक्फ बोर्ड
अदालत ने कहा- उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड विवादित जमीन पर अपना दावा साबित करने में विफल रहा। मस्जिद में इबादत में व्यवधान के बावजूद साक्ष्य यह बताते हैं कि प्रार्थना पूरी तरह से कभी बंद नहीं हुई। मुस्लिमों ने ऐसा कोई साक्ष्य पेश नहीं किया, जो यह दर्शाता हो कि वे 1857 से पहले मस्जिद पर पूरा अधिकार रखते थे।
बाबरी मस्जिद
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- "मीर बकी ने बाबरी मस्जिद बनवाई। धर्मशास्त्र में प्रवेश करना अदालत के लिए उचित नहीं होगा। बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनाई गई थी। मस्जिद के नीचे जो ढांचा था, वह इस्लामिक ढांचा नहीं था।"
बाबरी विध्वंस
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह एकदम स्पष्ट है कि 16वीं शताब्दी का तीन गुंबदों वाला ढांचा हिंदू कारसेवकों ने ढहाया था, जो वहां राम मंदिर बनाना चाहते थे। यह ऐसी गलती थी, जिसे सुधारा जाना चाहिए था।
नई मस्जिद
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- अदालत अगर उन मुस्लिमों के दावे को नजरंदाज कर देती है, जिन्हें मस्जिद के ढांचे से पृथक कर दिया गया तो न्याय की जीत नहीं होगी। इसे कानून के हिसाब से चलने के लिए प्रतिबद्ध धर्मनिरपेक्ष देश में लागू नहीं किया जा सकता। गलती को सुधारने के लिए केंद्र पवित्र अयोध्या की अहम जगह पर मस्जिद के निर्माण के लिए 5 एकड़ जमीन दे।
धर्म और आस्था
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "अदालत को धर्म और श्रद्धालुओं की आस्था को स्वीकार करना चाहिए। अदालत को संतुलन बनाए रखना चाहिए। हिंदू इस स्थान को भगवान राम का जन्मस्थान मानते हैं। मुस्लिम भी विवादित जगह के बारे में यही कहते हैं। प्राचीन यात्रियों द्वारा लिखी किताबें और प्राचीन ग्रंथ दर्शाते हैं कि अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि रही है। ऐतिहासिक उद्धहरणों से संकेत मिलते हैं कि हिंदुओं की आस्था में अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि रही है।"
एएसआई की रिपोर्ट
पीठ ने कहा, "मस्जिद के नीचे जो ढांचा था, वह इस्लामिक ढांचा नहीं था। ढहाए गए ढांचे के नीचे एक मंदिर था, इस तथ्य की पुष्टि आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) कर चुका है। पुरातात्विक प्रमाणों को महज एक ओपिनियन करार दे देना एएसआई का अपमान होगा। हालांकि, एएसआई ने यह तथ्य स्थापित नहीं किया कि मंदिर को गिराकर मस्जिद बनाई गई।'
निर्णय के संकेतक
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "सीता रसोई, राम चबूतरा और भंडार गृह की मौजूदगी इस स्थान की धार्मिक वास्तविकता के सबूत हैं। हालांकि, आस्था और विश्वास के आधार पर मालिकाना हक तय नहीं किया जा सकता है। यह केवल विवाद के निपटारे के संकेतक।"
सरकारी रिकॉर्ड
पीठ ने कहा- विवादित जमीन रेवेन्यू रिकॉर्ड में सरकारी जमीन के तौर पर चिह्नित थी। यह सबूत मिले हैं कि राम चबूतरा और सीता रसोई पर हिंदू 1857 से पहले भी यहां पूजा करते थे, जब यह ब्रिटिश शासित अवध प्रांत था। रिकॉर्ड में दर्ज साक्ष्य बताते हैं कि विवादित जमीन का बाहरी हिस्सा हिंदुओं के अधीन था।
निर्मोही अखाड़ा
संविधान पीठ ने जन्मभूमि के प्रबंधन का अधिकार मांगने की निर्मोही अखाड़ा की याचिका खारिज कर दी। हालांकि, कोर्ट ने केंद्र से कहा कि मंदिर निर्माण के लिए बनने वाले ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़े को किसी तरह का प्रतिनिधित्व दिया जाए।
शिया वक्फ बोर्ड
1946 के फैजाबाद कोर्ट के आदेश को चुनौती देती शिया वक्फ बोर्ड की विशेष अनुमति याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया। शिया वक्फ बोर्ड का दावा विवादित ढांचे पर था। इसी को खारिज किया गया।