पुलिस किसी को कितनी देर तक हिरासत में रख सकती है? जानिए क्या है नियम
लोगों को ऐसा लगता है कि डीटेन कसर के पुलिस उन पर केस कर सकती है. ऐसा नहीं होता. आपके ऊपर अगर कोई चार्जेज लगेंगे तभी पुलिस आपको गिरफ्तार कर सकती है. डीटेन भी कुछ समय तक ही किया जा सकता है.
आम आदमी दो चीज़ों से डरता है, ऐसा कहते हैं. खाकी वर्दी, और काला कोट. यानी पुलिस और वकील दोनों से ही 36 का आंकड़ा. किसी को डराना हो तो कह दो, थाना-कचहरी करवा देंगे. बस, वहीं इंसान दो बार सोचने लगता है.
देश भर में नागरिकता संशोधन कानून (CAA- सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट) के खिलाफ प्रदर्शन चल रहे हैं. लोग पुलिस के सामने प्रोटेस्ट कर रहे हैं. कई लोगों को डीटेन भी किया जा रहा है. कुछ को अरेस्ट भी किया गया है.
क्या होता है डीटेन किए गए/ हिरासत में लिए गए लोगों के साथ? क्या होते हैं उनके अधिकार? क्या चीज़ें करनी या नहीं करनी चाहिए. हमने बात की प्रज्ञा पारिजात सिंह से. वो सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं. उन्होंने हमें बारीकियां बताईं हिरासत और गिरफ्तारी की. यहां पढ़ लीजिए:
# हिरासत में लेने का मतलब ये नहीं है कि आपने कोई जुर्म किया है. इसका मतलब ये है कि प्रशासन को लग रहा है कि आप कोई जुर्म कर सकते हैं, या फिर आपसे जाने-अनजाने में शान्ति भंग हो सकती है.
# अगर आपको हिरासत में लिया जाए, तो आप को पूरा हक़ है ये पूछने का कि आपको किस आधार पर हिरासत में लिया गया है.
# आपको अपने लिए वकील की मांग रखने का हक़ है.
# पुलिस आपसे कोई कागज़ात साइन करने को कहे तो बिलकुल न करें.
# आप अगर डीटेन किए गए हैं तो इसका मतलब ये नहीं है कि आप किसी से संपर्क नहीं कर सकते. आपको पूरा हक़ है किसी से भी संपर्क करने का. किसी को कॉल करने का.
# पुलिस आपको ज्यादा देर तक डीटेन करके नहीं रख सकती. उसे आपको छोड़ना ही होगा. अगर आप पर किसी मामले में अपराध के चार्ज नहीं लगते हैं, तो आपको डीटेन करके ज्यादा देर तक नहीं रखा जा सकता.
# अगर डीटेन करके के बाद पुलिस आप पर बलप्रयोग करती है, या आपको किसी भी तरह से हैरेस करती है, तो आप कानून की मदद लेकर उन्हें कोर्ट में चैलेन्ज कर सकते हैं. अगर साबित हुआ कि आप सही हैं, तो आपको मुआवजा भी मिलेगा.
# अगर आपसे आपका फोन छीना जाए या कोई सामान आपसे ले लिया जाए, तो अपने अधिकार दोहरायें. जो समान लिया गया है उसकी रसीद मांगें. अगर नुकसान पहुंचाया जाता है तो उसे एविडेंस (सुबूत) के तौर पर सुरक्षित रखें और बाद में मजिस्ट्रेट के सामने इस मामले को ले जाएं.
डीटेन होने और अरेस्ट होने में फर्क है. डीटेन हो जाने भर से किसी के खिलाफ कोई मुकदमा नहीं चलेगा. लेकिन अगर गिरफ्तारी होती है, यानी अरेस्ट. तो बात दूसरी है.
अरेस्ट तब किया जाता है जब क्राइम चार्जेज लगते हैं. उसके बाद 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाता है. उसके बाद उसे हिरासत में रखा जाता है. ये कितने दिनों की होगी ये पुलिस क्राइम के हिसाब से तय करती है. दो तरह की हिरासत होती है. पुलिस और जुडिशियल. पुलिस कस्टडी में न आरोपी को पुलिस के पास हिरासत में रखा जाएगा. जुडिशियल कस्टडी में वो मजिस्ट्रेट के आदेश से जेल में जाएगा. अगर पुलिस उससे मिलना चाहे तो उसे मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी होगी.