कीमतें सत्र से पहले तय की गई थीं
मानसून सत्र 19 जुलाई को शुरू हुआ और निर्धारित समय से दो दिन पहले 11 अगस्त को समाप्त हुआ। तेल कंपनियों ने सत्र शुरू होने से पहले ही तेल की कीमतों को स्थिर कर दिया था। सबसे पहले 15 जुलाई को दिल्ली में डीजल की कीमत 89.87 रुपये प्रति लीटर तय की गई थी। ठीक दो दिन बाद पेट्रोल की कीमत 101.84 रुपये प्रति लीटर तय की गई। हालांकि पिछले एक महीने में संसद सत्र के दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में जबरदस्त उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। कच्चा तेल जो 15 जुलाई को 73.47 डॉलर प्रति बैरल था, 19 जुलाई को 68.62 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया। इसके बाद 29 जुलाई को इसमें बढ़ोतरी देखी गई जब कच्चे तेल के एक बैरल की कीमत 76.05 डॉलर पर पहुंच गई। कुछ दिनों बाद इसमें फिर गिरावट आई और यह 69.04 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया। शुक्रवार को पिछले कारोबारी सत्र के बाद से यह 70.59 बैरल पर है। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में इतनी अधिक अस्थिरता के बावजूद तेल कंपनियों ने न तो कीमतों में वृद्धि की और न ही कीमतों में कमी की।
सवाल का जवाब नहीं मिला
पेट्रोलियम राज्य मंत्री रामेश्वर तेली ने 4 अगस्त को राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा कि तेल की दैनिक कीमतें तय करने की नीति 16 जून, 2017 से पूरे देश में लागू कर दी गई है। उनके अनुसार, यह नीति ऐसा इसलिए किया गया है ताकि तेल की कीमत को लेकर पारदर्शिता बनी रहे। इस मामले में इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन, भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड, हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड और पेट्रोलियम मंत्री से मेल के जरिए जानकारी मांगी गई थी। लेकिन इस मामले में किसी भी तरफ से कोई जवाब नहीं आया। गौरतलब है कि बाजार में करीब 90 फीसदी की संयुक्त हिस्सेदारी के साथ इन तीनों कंपनियों का एकाधिकार है।
4 मई से लगातार कीमतों में इजाफा हो रहा है
घरेलू पेट्रोल और डीजल की कीमतों में 4 मई से लगातार बढ़ोतरी हो रही है। इससे एक दिन पहले पांच विधानसभा चुनावों के नतीजे घोषित किए गए थे। 4 मई से अब तक पेट्रोल की कीमत में 11.44 रुपये की बढ़ोतरी हुई है। वहीं, डीजल की कीमत में 9.14 रुपये की बढ़ोतरी हुई है। इस दौरान कई जगहों पर ऐतिहासिक रूप से पेट्रोल के दाम बढ़े हैं और कई जगह 100 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गए हैं। विशेष रूप से, दिल्ली में IOC की ईंधन कीमत पूरे देश के लिए बेंचमार्क है, लेकिन विभिन्न राज्यों के करों और स्थानीय शुल्कों के कारण इसकी कीमतों में असमानता है। गौरतलब है कि भारत 80 फीसदी से ज्यादा कच्चे तेल का आयात करता है। इसके बाद रिफाइनरियों में प्रसंस्करण के बाद इसकी आपूर्ति की जाती है। यहां पेट्रोल-डीजल के दाम भी ज्यादा हैं।
केंद्र और राज्य सरकार कर लगाती है
1 अगस्त को जारी आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली में केंद्रीय लेवी 32.3 फीसदी है जबकि राज्य सरकार इस पर 23.07 फीसदी टैक्स लगाती है। वहीं डीजल पर केंद्रीय कर 35.38 प्रतिशत से अधिक है और राज्य इस पर 14.62 प्रतिशत कर लगाता है। 2020 के दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में गिरावट के बाद केंद्र सरकार ने इस पर उत्पाद शुल्क बढ़ा दिया। यह सरकार द्वारा राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिए किया गया था। कोरोना महामारी के दौरान राजस्व पर असर पड़ा, इसलिए राज्यों ने भी इस मॉडल को अपनाया। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, पेट्रोलियम क्षेत्र ने 2020-21 में केंद्रीय उत्पाद शुल्क राजस्व में 3,71,726 करोड़ रुपये का योगदान दिया। वहीं, राज्यों को वैट के रूप में इसका योगदान 2,02,937 करोड़ रुपये था।
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