विश्वगुरु, इंदौर। शिवराज सिंह चौहान सरकार मध्य प्रदेश की अब तक की सबसे ज्यादा किसान विरोधी सरकार है। मुख्यमंत्री आज किसानों को बीज बांटने का नाटक कर रहे हैं। जबकि जब किसानों को बीज की सबसे ज्यादा जरूरत थी तब सोयाबीन का बीज बाजार से गायब था। किसानों को 9000 रूपये से लेकर 12000 रूपये तक के दाम में बीज खरीदने को मजबूर होना पड़ा था। निमाड़ के इलाके में सूखा पड़ा हुआ है और शिवराज सिंह चौहान सरकार ने आज तक वहां के किसानों की सुध नहीं ली। इंदौर और आसपास के इलाके में आलू का किसान बुरी तरह परेशान है। मूंग के किसान की दुर्दशा आप सब को पहले से ही पता है। श्री जीतू पटवारी ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए आज यह बात कही।
श्री पटवारी ने कहा कि मोदी सरकार ने 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का वादा किया था। लेकिन किसानों की आमदनी तो दोगुनी नहीं हुई, लागत जरूर दोगुनी हो गई है। मध्यप्रदेश में बिजली के दाम डेढ़ गुना हो गए हैं, जबकि कमलनाथ सरकार में बिजली के बिल आधे हो गए थे। प्रदेश में डीजल के दाम भी दुगने स्तर पर पहुंच गए हैं। खाद और बीज की कीमत भी दुगनी हो गई हैं।
श्री पटवारी ने कहा कि शिवराज सिंह चौहान सरकार का बीज ग्राम बनाने का दावा हास्यास्पद है। उन्होंने मांग की कि पहले बीज उत्पादक सहकारी समितियों के घोटाले का हिसाब दें जिन्होंने सरकारी अनुदान से बीज बनाकर निजी कंपनियों को बेच बेच दिए। और किसानों को लूटने के लिए मजबूर किया। सरकार यह बात स्पष्ट करें कि बीज विकास निगम किसानों को बीज उपलब्ध कराने में सक्षम है या नहीं। अगर सक्षम है तो किसानों को सोयाबीन का बीज क्यों नहीं मिल सका।
श्री पटवारी ने कहा शिवराज सरकार पूरी तरह किसान विरोधी है। श्री कमलनाथ जी ने प्रदेश के 27 लाख किसानों का कर्ज माफ कर दिया था और उसके बाद जितने किसानों का कर्ज माफ होना था वह माफ ना करना पड़े इसके लिए शिवराज सरकार ने किसान कर्ज माफी योजना ही बंद कर दी। मोदी सरकार ने उद्योगपतियों का 10.80 लाख करोड़ रूपयों का कर्जा माफ किया है। लेकिन किसानों के कर्ज का एक पैसा भी माफ नहीं किया।
श्री पटवारी ने कहा कि किसानों के लिए फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बमुश्किल 2 से 3 प्रतिशत का ही इजाफा हुआ है, जबकि इसी दौरान महंगाई दर 12 और 13 प्रतिशत की दर से बढ़ी है। अगर स्थिर मूल्यों पर इसका आकलन किया जाए तो न्यूनतम समर्थन मूल्य पिछले साल की तुलना में कम ही हुआ है।
मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री ने मूंग का दाना-दाना खरीदने की बात की थी, लेकिन किसान अपने घर पर मूंग को देख देख कर रो रहा है। सोयाबीन के बीज जो सरकार के प्रमाणीकरण से सप्लाई हुए थे, वह अंकुरित नहीं हुए। बीज अंकुरित ना होने का कोई मुआवजा सरकार ने नहीं दिया है।
श्री पटवारी ने कहा कि ओला-पाला की नुकसानी किसानों को नहीं दी। यहां तक कि अतिवृष्टि के कारण ग्वालियर चंबल संभाग में किसानों की खड़ी फसलें बह गई उनका संतोषजनक सर्वेक्षण भी अभी तक चालू नहीं हुआ है, मुआवजे की बात तो बहुत दूर है।
श्री पटवारी ने कहा कि खरीफ के 2019 तक के बाद बीमा के मुआवजा और बीमा राशि के दावे का सेटलमेंट नहीं हुआ है, 3 लाख 17 हजार किसानों के दावे का भुगतान नहीं हुआ है। सरसों की जो एक बड़ी पैदावार ग्वालियर चंबल संभाग की है, उसकी खरीदी नहीं हुई है।
उन्होंने कहा कि बिजली के लाखों रुपए के बिल किसानों को थमाई जा रहे हैं, उनकी संपत्तियां कुर्क की जा रही हैं, मोटर साइकिल और ट्रैक्टर खींचे जा रहे हैं। हालात इतने बदतर हैं कि भोपाल के ही ग्राम खजूरी अमरावद खुर्द के 500 किसानों को बिजली विभाग का घेराव करना पड़ा है। एक किसान वीर सिंह राजपूत के पिता की मृत्यु एक साल पहले हो गई। उनके नाम का मीटर सरेंडर हो चुका था, बिजली विभाग में जमा हो चुका है लेकिन ऐसे मृतकों को भी 16 हजार के बिल थमाया जा रहे हैं और वसूली के लिए उन पर ज्यादती की जा रही है।
श्री पटवारी ने कहा कि किसी भी कृषि अर्थव्यवस्था का विकास बिजली की खपत और एनपीके नाइट्रोजन फास्फोरस पोटेशियम की खपत से नापा जाता है, जो एनपीके की बोरी 700 रूपये की आती थी, मध्य प्रदेश के विपणन बोर्ड ने उसकी कीमत 1550 रूपये तक जारी की है। जो अमोनियम फास्फेट 1000 रूपये की बोरी आती थी, उसकी दरें 1225 हो गई हैं। इसीलिए किसानों की आत्महत्या के प्रकरण तेजी से बढ़ रहे हैं। लोगों की आशाएं इस सरकार में समाप्त हो चुकी हैं।
श्री पटवारी ने कहा कि भूमि अधिग्रहण कानून के अनुसार किसानों को ना तो मुआवजा दिया जा रहा है और ना ही कानून के मुताबिक जितने गुना हर्जाना मिल रहा है। कानूनी आधार पर प्रकरणों का निर्धारण नहीं हो रहा है। एक्सप्रेस हाईवे के नाम पर इंदौर के किसानों की जमीन हाथिआई जा रही हैं, लेकिन मुआवजे के नाम पर उन्हें अंगूठे दिखाए जा रहे हैं। कानून के अनुसार कलेक्टर गाइडलाइन से चार गुना मुआवजा उन्हें मिलना चाहिए, लेकिन मध्यप्रदेश में इस कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। किसान जमीन से भी हाथ धो रहा है और पैसे से भी।
कृषि क्षेत्र में सबसे ज्यादा काम करने का दावा करने वाले शिवराज सिंह चौहान की सरकार में पिछले 17 साल से कृषि विभाग में स्थाई पदों पर नियुक्ति नहीं हुई है। कृषि विभाग में 14572 पद स्वीकृत हैं, जबकि यहां सिर्फ 8000 कर्मचारी और अधिकारी तैनात है। इस तरह कृषि विभाग में करीब 40 प्रतिशत पद खाली पड़े हुए हैं।
मध्यप्रदेश में किसान की औसत आमदनी 20000 रूपये साल से कम है। इससे ज्यादा आमदनी तो दिहाड़ी मजदूर कमा लेता है। मनरेगा के एक मजदूर को भी एक महीने में लगभग 6000 रूपये मजदूरी मिल जाती है।
श्री पटवारी ने कहा कि प्रदेश का हाल यह है कि शिवराज मस्त और किसान पस्त। शिवराज सरकार सिर्फ किसानों पर गोलियां चलाना जानती है उनसे जबरन जमीन छीनना जानती है। श्री कमलनाथ जी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी किसानों के साथ खड़ी है और हर अन्याय का डटकर मुकाबला करेगी।
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