इंदौर। पंचायतों के संचालन पर सस्पेंस बना हुआ है। पंचायतों के संचालन को लेकर 4 जनवरी को जारी निर्देश को निरस्त कर दिया गया है। इस क्रम में सरपंचों को आर्थिक शक्ति प्रदान की गई। इसे टाल दिया गया है। अब इस मामले पर सियासत तेज हो गई है।
कांग्रेस ने सवाल उठाया है कि पंचायतों के संचालन के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है। ऐसे में मनरेगा, खाद्य सुरक्षा व अन्य योजनाओं का भुगतान कैसे होगा। कांग्रेस का आरोप है कि सरकार की लापरवाही के कारण ग्राम पंचायतों की व्यवस्था ठप हो गई है। 2 साल तक चुनाव नहीं हुए और अभी भी लंबे समय तक चुनाव की कोई संभावना नहीं है। ऐसे में पंचायतों के संचालन के संबंध में जो वित्तीय अधिकार दिए गए थे, वे भी छीन लिए गए। यह जनता के साथ गलत है।
मध्य प्रदेश में पंचायतों के संचालन को लेकर एक दिन पहले एक बार फिर बड़ा फैसला लिया गया है। पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग ने पंचायतों को चलाने की जिम्मेदारी तय की थी। लेकिन तब पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने इस फैसले को बदल दिया। दरअसल 4 जनवरी को पंचायतों के संचालन को लेकर एक निर्देश जारी किया गया था। इसके तहत पंचायतों को चलाने की जिम्मेदारी सचिव और सरपंच (प्रधान प्रशासनिक समिति) को सौंपी गई थी। लेकिन अब इस आदेश को निरस्त कर दिया गया है।
पंचायतों के संचालन को लेकर सस्पेंस
आदेश को निरस्त करते हुए सरपंचों को दी जाने वाली आर्थिक शक्ति को निलंबित कर दिया गया। इस आदेश का पत्र भी जारी कर दिया गया है। यह आदेश मध्य प्रदेश पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की ओर से जारी किया गया है। इस आदेश के बाद मध्य प्रदेश में पंचायतों के संचालन को लेकर एक बार फिर सस्पेंस शुरू हो गया है। आदेश रद्द होने के बाद पंचायतों को चलाने की जिम्मेदारी किसे दी जाएगी, इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है। यह तभी स्पष्ट होगा जब सरकार की ओर से नया आदेश जारी किया जाएगा।
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