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विचारों के इस कुंभ में, हर संवाद एक दीप की तरह जला।
महोत्सव की चर्चा का केन्द्रबिंदु बना—आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की बढ़ती छाया और पत्रकारिता की मौलिक पहचान। मंच से जब वरिष्ठ पत्रकार अमृता सिंह ने कहा, "टेक्नोलॉजी को जानो, अपनाओ—but do not surrender," तो मानो एक आत्मा ने पुकारा हो—कि मनुष्य बने रहना, सबसे बड़ी चुनौती है।
उन्होंने चेताया कि पत्रकारिता अब महज़ समाचार संप्रेषण नहीं, अपितु एक नैतिक जिम्मेदारी है। "जो आंख, नाक और कान खुले रखते हैं, वही पत्रकार कहलाते हैं—बाकी सब महज़ प्रसारक हैं," उनका यह कथन नवोदित पत्रकारों के लिए जैसे एक दीक्षा मंत्र बन गया।
‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ की विचारधारा को समर्थन
इंदौर के महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सरल और सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से एक देश, एक चुनाव की संकल्पना को सराहा। उन्होंने न केवल आंकड़ों के ज़रिये इसके आर्थिक लाभ गिनाए, बल्कि इसे लोक व्यवस्था की एक नवीन लय की संज्ञा भी दी।
उन्होंने कहा कि जब हर चुनाव के लिए चंदे का एक ही दौर चले, जब प्रशासकीय ऊर्जा का अपव्यय रुके और जब शासन की निरंतरता सुनिश्चित हो—तब ही सच्चे अर्थों में जनतंत्र फलता है।
साथ ही उन्होंने नगर निगम की जनभागीदारी आधारित योजनाओं—ग्रीन बॉन्ड, सोलर सिटी, और पब्लिक मॉडल्स—को लोकतांत्रिक नवाचार का प्रतीक बताया।
प्रेस की स्वतंत्रता पर चिंता
गौतम लाहिड़ी, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के अध्यक्ष, ने वर्तमान मीडिया परिदृश्य की गिरती स्वाधीनता को लेकर गहरी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि जब सवाल पूछने की जगह संकुचित होती जाए, और जब संसद के सेंट्रल हॉल से पत्रकारों की उपस्थिति मिटा दी जाए—तब समझ लेना चाहिए कि लोकतंत्र के पहिए धीमे पड़ रहे हैं।
उन्होंने नेशनल मीडिया पॉलिसी को एक आवश्यक दस्तावेज बताते हुए सरकार और विपक्ष—दोनों से इसके लिए सहयोग मांगा।
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अमृता सिंह का वक्तव्य महज़ भाषण नहीं, आत्मस्वीकार था—एक ऐसी पत्रकार की आत्मकथा, जिसने साहित्य, संवेदना और सत्य—तीनों को साथ लेकर कलम चलाई है। उन्होंने कहा कि आज की पत्रकारिता तकनीक की छांव में पनप रही है, परंतु चेताया भी कि "AI को जानना ठीक है, पर उसका अनुचर बनना आत्मघात है।"
उनकी आंखों में एक पत्रकार मां की पीड़ा भी झलकी, जो देख रही है कि कैसे कई राज्यों में पत्रकारों को जलाया जा रहा है, जेल भेजा जा रहा है—और फिर भी वे सच कहने से नहीं चूकते।
अंत में...
यह महोत्सव किसी कार्यक्रम का समापन नहीं था, बल्कि विचारों की वह नदी थी जो एक बार बह चली तो थमने का नाम नहीं लेती।
अतिथियों का स्वागत स्टेट प्रेस क्लब के अध्यक्ष श्री प्रवीण खारीवाल (कप्तान), आकाश चौकसे, नईम कुरैशी ने किया। अभिषेक सिसोदिया, रचना जौहरी, सोनाली यादव, मीना राणा शाह, शीतल राय और संजीव श्रीवास्तव ने अतिथियों को प्रतीक चिह्न भेंट किए। संचालन आलोक वाजपेयी ने किया और आभार नवनीत शुक्ला ने व्यक्त किया।
यह आयोजन एक बार फिर यह स्मरण दिला गया कि—
जब विचार निष्कलुष होते हैं, तो संवाद भी स्वयं में एक क्रांति बन जाते हैं।